जिनकी आंखें नहीं होती उनसे पूछिए आंखों का सुख। वो कहते है न कि जब तक कोई चीज हमारे पास है हमें उसकी उपयोगिता समझ नहीं आती लेकिन उसके न होने पर उसकी कमी खलती है। जरा कल्पना कीजिए यदि आपकी आंखें न हो तो आप इस दुनिया को कैसे देखेंगे। सिर्फ एक काला सा अंधेरा ही हर पल आपकी दिखे तो कैसी झुंझलाहट होगी आपको, है ना। ऐसा कई लोग हर पल महसूस करते है। नेत्रहीनों के जीवन में भी रोशनी आए और वो भी खुल कर अपना जीवन जिएं ऐसी ही सोच रखने वाले लुईस ब्रेल ने एक ऐसा हथियार दिया नेत्रहीनों को जिससे उनका जीवन ही बदल गया। क्या था वो हथियार जिससे बदल गया नेत्रहीनों का जीवन आइए जानते है….
किया ब्रेल लिपि का अविष्कार
लुईस ब्रेल के जन्मदिन के मौके पर इस दिन को मनाया जाता है। इन्होंने नेत्रहीनों के जीवन को रोशन किया ब्रेल लिपि का अविष्कार करके। ये दिन नेत्रहीनों के जीवन में विशेष महत्व रखता है। ब्रेल लिपि एक भाषा है उन लोगों के लिए जो आंखों से आंशिक या पूर्ण रूप से देख नहीं सकते। जिन लोगों की आंखें जन्म से या किसी कारण से बाहरी दुनिया को देख नहीं सकती उन लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए, दुनिया के साथ बराबर खड़े होने के लिए लुईस ब्रेल ने इस लिपि का अविष्कार किया ताकि नेत्रहीन लोग स्वयं को कम न आंकें। ये लुईस ब्रेल कौन थे आइए जानते है उनके बारे में।
लुईस ब्रेल का संक्षिप्त परिचय
फ्रांस के एक छोटे से गांव में 4 जनवरी 1809 को लुईस ब्रेल का जन्म हुआ था। उनके पिता साइमन रेले ब्रेल शाही घोड़ों के लिए काठी बनाने का काम करते थे। जब लुईस 3 साल के थे तब से वो अपने पिता के साथ काम करवा रहे थे क्योंकि उनकी आर्थिक हालत खराब थी। एक हादसे में उनकी एक आंख में चाकू लग गया और दूसरी आंख भी धीरे धीरे खराब होने लगी। घर की हालत बहुत खराब थी इसलिए उनके पिता उनकी आंखों का इलाज नहीं करवा पाए और लुईस 8 साल की उम्र में ही पूर्ण रूप से नेत्र हीन हो गए। बाद में लुईस ने नेत्रहीनों के स्कूल में एडमिशन लिया और वहां उन्हें सेना की एक ऐसी कूटलिपी के बारे में ज्ञात हुआ जो अंधेरे में भी शब्दों को पढ़ सकती है। तब उन्होनें विचार किया कि क्यों न ऐसी ही लिपि नेत्रहीनों के लिए भी तैयार की जाए जिससे वो भी पढ़ लिख सकें।
ब्रेल लिपि कैसी होती है
ब्रेल लिपि को यदि नेत्रहीनों के लिए वरदान कहेंगे तो गलत नहीं होगा। ये लिपि एक स्पर्शनीय कोड होता है। इसमें एक उभरे हुए कागज का यूज होता है जिसमे छूकर हम शब्दों को पहचान सकते है। जैसे टाइपराइटर से टाइप करते है वैसे ही ब्रेलराइटर से ब्रेल लिपि लिखी जाती है। इसके अलावा स्टाइलस और ब्रेल स्लेट भी आती है। ब्रेल लिपि में जो उभरे हुए अक्षर होते है उन्हे सेल कहते है।

दुनिया करती है लुईस को सलाम
कमियां तो हम सभी में होती है लेकिन जो अपनी कमियों को किस्मत मानकर बैठ जाते है वो कभी आगे नहीं बढ़ते। वहीं जो अपनी कमियों को अपनी ताकत बना लेते है वो ही दुनिया में लोगों के लिए मिसाल बन जाते है। हालाकि उनके जीवित रहते उनको तारीफ मिले या न मिले लेकिन दुनिया से जाने के बाद उनके कार्यों को सराहा जरूर जाता है तभी तो लुईस ब्रेल के जन्मदिन के दिन वर्ल्ड ब्रेल दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 6 नवंबर 2018 को ये प्रस्ताव पारित किया कि हर साल 4 जनवरी को विश्व ब्रेल दिवस मनाया जायेगा क्योंकि 4 जनवरी को ही लुईस ब्रेल का जन्मदिन आता है। लुईस ने नेत्रहीनों को जीने की वजह दी है, इस बात से तो कोई इंकार कर ही न सकता।
आंखें न होने के बाद भी ऐसा अविष्कार लुईस ने कर दिखाया जिसकी वजह से आज एक नेत्रहीन व्यक्ति भी दुनिया की भीड़ में खड़ा है सामान्य लोगों के समान। ब्रेल लिपि के कारण ही तो उसे बराबर का हक मिला है आज आत्मविश्वास के साथ वो जीवन जी रहा है। ऐसे लोग सामान्य नहीं बल्कि बहुत खास होते है। अगर लुईस ब्रेल को नेत्रहीनों का मसीहा कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।