World Aids Day: बदलनी होगी लोगों की मानसिकता

वैदेही एक सुलझी हुई लड़की थी। उसका सपना था बड़े होकर आईएएस ऑफिसर बनने का। वो अपने पापा से कहती कि पापा देखना एक दिन में आईएएस ऑफिसर बनूंगी और शहर की सारी परेशानियां दूर कर दूंगी। लेकिन समय क्या खेल दिखाएगा किसे पता।

अचानक से पिता को हार्ट अटैक आया और पिताजी चले गए। हम जो सोचे लाइफ में हमेशा वैसा ही हो ये ज़रूरी तो नहीं न। ऐसा ही हुआ वैदेही की जिंदगी में। अचानक से उसके जीवन की गाड़ी पटरी से उतर गई। वो बीए सेकंड ईयर में ही तो थी, उसे पढ़ाई छोड़नी पड़ी। पापा प्राइवेट जॉब में थे तो उसे उनके ऑफिस में जॉब भी नहीं मिल सकती थी। मां भी पढ़ी लिखी नहीं थी तो वो भी घर की सारी जिम्मेदारी नहीं संभाल सकती थी। हालाकि वो लोगों के कपड़े सिल कर थोड़ा बहुत घर खर्च के लिए पैसे जुटा ही लेटी थी। लेकिन तीन भाई बहन और उनकी पढ़ाई वैदेही नहीं छुड़ाना चाहती थी।

वैदेही ने जॉब देखना शुरू किया। ज्यादा पढ़ी लिखी न होने की वजह से उसे कॉल सेंटर की जॉब मिली। उसने वही जॉब करने का फैसला किया।

रात की ड्यूटी ये मैं नहीं करने दूंगी तुझे, वैदेही की मां बोली। मां अच्छा है सुबह मैं तेरे घर के काम में मदद कर दूंगी तो तू सिलाई का काम कर लेगी। फिर रात को मैं काम पर जाऊंगी तो तू बच्चों को देख लेगी। और वो लोग गाड़ी भी दे रहे है , वो ही लेने आएगी और छोड़ने भी। अब मां इतना मत सोच। जिंदगी कोई मेरे पापा जैसी तो नहीं है न जो मेरी हर जिद पूरा करेगी। कॉम्प्रोमाइज तो करना ही पड़ेगा ना।
जैसे तैसे उसकी मां मां गई। अच्छी खासी जॉब चल रही थी । बॉस भी वैदेही की मेहनत से खुश था। उसने उसे इनाम का पूछा कि क्या लोगी, उसने कहा सर यदि आप सच में खुश है तो मेरा बीए थर्ड ईयर कंप्लीट करा दीजिए बस। बॉस ने उसकी फीस भरी और वैदेही ने बीए कंप्लीट कर लिया।

एक बार की बात है, रात के 2 बजे थे, ऑफिस की गाड़ी खराब थी। वैदेही आज तुमको मैनेज करना पड़ेगा क्योंकि गाड़ी खराब है। बॉस ने कॉल करके वैदेही को कहा। मैं अपनी गाड़ी भेज देता लेकिन मेरा बेटा गाड़ी लेकर गया हुआ है।
इट्स ओके सर मैं मैनेज कर लूंगी। वैदेही ने कहा लेकिन मन में ये ही सोच रही थी कैसे करूंगी। इतनी रात को अकेले। फिर 3 बजे वो घर के लिए निकली। रास्ता सुनसान था एकदम । उसने कैब करने की कोशिश की लेकिन कैब नहीं हो रही थी।

तभी एक टैक्सी दिखी उसने टैक्सी की, बहुत बुजुर्ग आदमी था। वो रात में अकेली लड़की को देखकर उसे घर पहुंचाने के लिए मान गया।
आधा रास्ता ही हुआ था कि उसकी टेक्सी खराब हो गई। अब सुनसान रास्ता टैक्सी खराब। फोन भी ऑफ हो गया था। तभी चार लड़के एक जीप में निकले , आगे बढ़े लेकिन फिर पीछे आए कहते है क्या हुआ अंकल टैक्सी खराब हो गई। हम छोड़ देते है आपकी सवारी को। वो लड़के नशे की हालत में थे, वो टैक्सी वाले ने लड़की के चेहरे पे डर साफ देख लिया था। उसने मन में सोचा अगर मैं कुछ बोलूंगा तो ये मुझे मार पीट कर लड़की के साथ जरूर बत्तमीजी करेंगे।

अरे हां बेटे अब देखो न मैं इस लड़की को हॉस्पिटल ले जा रहा था और टैक्सी रास्ते में खराब हो गई। तुम लोग ले जाओ इसे हॉस्पिटल बेचारी बहुत बीमार है। क्या हुआ इसे, लाओ हम ले जाते है। ड्राइवर ने एक फाइल देते हुए बोला ज्यादा कुछ नहीं बस एड्स है।
एड्स……..न न न हम नहीं ले जायेंगे।
अरे घबराओ मत बेटा ये एड्स कोई छूने या आलिंगन से थोड़े फैलेगा। अरे माफ करो अंकल, हमें कोई पंगा नहीं लेना। और लड़के वहां से नौ दो ग्यारह हो गए।
वैदेही अवाक रह गई। वो न कुछ बोलने की स्थिति में थी ना कुछ समझने की। जब गाड़ी ठीक हुई तब ड्राइवर ने उसे घर उतार दिया। वैदेही पर्स से पैसे निकाल कर देती तब तक तो ड्राइवर बिना पैसे लिए चला गया टैक्सी रवाना करके।

अरे अंकल रुको तो पैसे तो लेते जाओ। लेकिन अंकल तो चले गए किसी और वैदेही को बचाने हाथ में फाइल लिए। रात भर वो यही सोचती रही अगर वो टैक्सी वाले अंकल न होते तो क्या होता मेरा।
अगले दिन वैदेही ने सुबह पेपर पढ़ा तो फ्रंट पेज पर उन्ही टैक्सी ड्राइवर की फोटो थी। वो टैक्सी ड्राइवर नहीं थे वो तो रिटायर्ड आईएएस ऑफिसर थे और रात में वो ऐसी ही औरतों को बचाने के लिए टैक्सी चलाते है। वैदेही ने उनको दिल ही दिल सैल्यूट किया। सोचा मैं तो आईएएस नहीं बन पाई लेकिन इन्होंने रिटायर होने के बाद भी शहर की समस्या दूर कर दी।

आज ऐसे ही लोगों की जरूरत है देश को जो अकेली औरत को इस तरह की नजर से बचा सके। जिस एड्स नाम की बीमारी को लोग जानलेवा समझते है आज उसी बीमारी ने वैदेही को बचा लिया। आज भी इस बीमारी को लेकर लोगों में कई संशय है। उन्हे इस बीमारी को जानने और समझने की जरूरत है।

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