विजयादशमी या दशहरा – स्वयं से स्वयं की जीत सिखाता है Dussehra

Learnings from Dusshehra

Introduction

रानी के नौ दिनों के व्रत के बाद आता है दशहरे का पर्व। दशहरा त्यौहार हममें भर देता है जोश अपार। कोई भी त्यौहार हमें मौका देता है break from work लेने का| माता के नौ दिन के नौ स्वरूप जो हमें सिखाते है बहुत कुछ। और जो कुछ भी हम इन नौ दिनों में सीखते है वो ही अपने अंदर स्थापित करने का दिन है Dussehraये पावन पर्व हमें कई बातें सिखाता है ,यदि उन बातों को हम जीवन में अप्लाई करें तो बहुत आगे जा सकते है| और कुछ बातें ऐसी भी है जो हमें नहीं करनी चाहिए| ये सीख भी Dusshehraपर्व हमें देता है। तो आइए समझते है दशहरे के पर्व को कुछ अलग दृष्टिकोण से….

मां का हर स्वरूप देता है एक सीख

जी हां, माता के नौ अद्भुत स्वरूपों की आराधना का ही पर्व है नवरात्री जिसका सुखद अंत होता है दशहरा से|

माता का पहला स्वरूप हमें सीख देता है स्थिरता और दृढ़ निश्चयी होने की। इस गुण की वजह से ही तो हम अपने निर्णय के प्रति स्थिर रहना सीखते है।

दूसरा स्वरूप हमें देता है शांत रहने की सीख। जब कई कोशिशों के बाद भी सफलता न मिलें तो शांत रहकर पहचानने की कोशिश करें कि गलती कहां से हो रही है।

मां का तीसरा स्वरूप हमें ये सिखाता है कि किसी के लिए समर्पित जैसे हुआ जाता है। अपने काम के प्रति समर्पण की भावना कैसे रखें ये सीख मिलती है हमें मां के तीसरे स्वरूप से।

चौथा स्वरूप सिखाता है हमें अपने अंदर के क्रोध पर नियंत्रण रखना,

पांचवें स्वरूप से सीख मिलती है हमें कि कैसे हम करें गरीब बेसहारों की मदद।

मां का छठा स्वरूप हमारे अंदर विकसित करता है सामंजस्यता का गुण। कैसे हम अपने काम और घर के मध्य सामंजस्य बैठाएं ये सीख देता है हमें मां का छठा स्वरूप।

सातवीं देवी हमारे अंदर के डर से लड़ना सिखाती है हमें। कैसे हम अपने अकेलेपन से लड़ कर स्वयं की केयर करना सीखें ये ज्ञान देती है मां हमें।

हमेशा अपना कर्म करते रहें बिना फल की चिंता किए ये शिक्षा देती है हमें मां अपने आठवें स्वरूप के जरिए।

मां का नवां स्वरूप हमें हर हाल में खुश रहना सिखाता है।

इन सब गुणों को अपने अंदर आत्मसात करने का दिन है दशहरा।

विचार करने योग्य बातें – जो आप सीखते हो Dussehra से

हर साल हम जलाते है रावण, हर साल होता है दहन बुराई का। लेकिन क्या हम दहन कर पाते है स्वयं के अंदर पनप रहे दंभ का, क्या हम दहन कर पाते है स्वयं के अंदर सांस ले रहे लालच के रावण का? शायद नहीं बस हर वर्ष हम निभाते है परंपरा।

लेकिन ये जानना बहुत जरूरी है कि हमारे अंदर क्या बुराइयां है जिनका दहन जरूरी है। यदि हमने अपने अंदर की बुराइयों को जीत लिया तो फिर हमें जीतने से कोई रोक नहीं सकता। शायद ये बात आपको अजीब लगे लेकिन सच है ये।

तात्पर्य

कहने का मतलब सिर्फ ये है कि इस दशहरा दहन करें स्वयं के अहंकार का, स्वयं के अज्ञान का, स्वयं के अनैतिक आचरण का और स्वयं को ले जाएं उस प्रकाश की ओर जो संघर्षों से तपकर आपको मिले। साथ ही ये कोशिश करें कि जो व्यक्ति आप पर स्वयं से ज्यादा विश्वास करता हो उसका विश्वास कभी न तोड़े, किसी भी परिस्थिति में।

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