प्रथमाष्टमी एक उड़िया त्यौहार, जिसमें किया जाता है बड़े बेटे को सम्मानित

भारतीय संस्कृति कई रंग समेटे हुए है अपने अंदर। हर प्रांत, हर प्रदेश के अपने अलग त्यौहार, अपनी अलग मान्यताएं, अपनी अलग संस्कृति। हर संस्कृति समेटे हुए है अपने अंदर एक अलग कहानी। जो जन मानस में जगती है विश्वास, श्रद्धा ईश्वर के प्रति। ऐसा ही एक त्यौहार है प्रथमाष्टमी जो उड़िया पर्व है और प्रत्येक वर्ष परिवार के सबसे बड़े बच्चे की दीर्घायु और सुख समृद्धि की कामना के लिए मनाया जाता है। ये त्यौहार मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को पूरी श्रद्धा और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

त्यौहार को मनाने के पीछे मान्यता

“इस दिन घर परिवार के बड़े बेटे का सम्मान किया जाता है, उसे नए नए कपड़े पहनाए जाते है। स्वादिष्ट व्यंजन खिलाकर उसे खुश किया जाता है। ये त्यौहार इसलिए मनाया जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि घर का बड़ा बेटा ही आगे चलकर घर की जिम्मेदारी उठाएगा इसलिए उसका सम्मान किया जाता है ताकि उसे इस बात का अहसास हो।”

इस दिन को काल भैरव अष्टमी या पाप नाशीनी अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। एकाग्र चंद्रिका पुराण के दसवें प्रकरण में भी इस दिवस के महत्व के बारे में विस्तार से बताया गया है। भगवान शिव को भी ये त्यौहार अति प्रिय है। आज के दिन देवाधिदेव महादेव को त्रिसखा बेल के पत्ते अर्पित किए जाते है। प्रथमाष्टमी का भगवान कृष्ण से भी गहरा संबंध है। कैसे, आइए जानते है…

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प्रथमाष्टमी और भगवान कृष्ण का संबंध

जब कंस को भविष्यवाणी के द्वारा यह ज्ञात होता है कि उसकी बहन देवकी की आठवीं संतान उसकी मृत्यु का कारण बनेगी तो यह जानकर कंस भयभीत हो जाता है। इसलिए वह देवकी और वसुदेव को कारागार में डाल देता है।

वह देवकी को तो जीवनदान दे देता है लेकिन उसकी छह संतानों को मृत्यु के घाट उतार देता है। जब देवकी को सातवीं संतान होने वाली होती है तो एक चमत्कार होता है।

भगवान विष्णु ने योग माया के द्वारा देवकी के 4 माह के भ्रूण को वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में डाल दिया। इस कारण वो बच्चा रोहिणी की संतान कहलाया।

देवकी ने अपने गर्भ से अपनी आठवीं संतान के रूप में भगवान कृष्ण को जन्म दिया इस तरह से वह देवकी के जीवित रहने वाली पहली संतान थे। तभी से उनकी लंबी आयु के लिए प्रथमाष्टमी त्यौहार मनाया जाने लगा।

यह भी माना जाता है कि आज ही के दिन कृष्ण और बलराम अपने मामा कंस के गए थे और वहां उनका भव्य स्वागत किया गया था, इसीलिए आज के दिन बड़े बच्चों को उनके मामा के घर से नए कपड़े और तरह-तरह के उपहार भेंट किए जाते हैं।

इस दिन एक विशेष पैनकेक बनाया जाता है जिसे एंदुरी पीठा कहते है। इसे हल्दी के पत्तों से तैयार किया जाता है और इसका भोग लगाया जाता है। आइए जानते है इसके बारे में..

एंदुरी पीठा रेसिपी


यह एक उड़िया रेसिपी है जिसे प्रथमाष्टमी के अवसर पर बनाया जाता है। नए कटे हुए चावल से इस डिश को बनाया जाता है और हल्दी के पत्तों में लपेट कर भाप में इसे पकाया जाता है। यदि हम शारीरिक दृष्टि से देखें तो ये बहुत हेल्थी रेसिपी भी है। हल्दी के पत्तों में पककर इस व्यंजन में हल्दी के औषधीय गुण भी मिल जाते है।

सामग्री
उरद डाल 2 कप
चावल 3 कप
कद्दूकस किया हुआ ताजा नारियल 1 कप
घर का बना ताजा पनीर या छेना 1 कप
चीनी 1 कप
नमक स्वाद अनुसार
हल्दी के पत्ते 8 से 10
इलायची पाउडर 1 चम्मच

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